सुधरेगी ऊसर मिट्टी और किसान होंगे समृद्ध

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न्यूज़ एक्सपर्ट—
लखनऊ। केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने ऊसर भूमि के सुधार हेतु परस्पर जिप्सम के विकल्प की खोज पर अनुसंधान केन्द्रित किया और लवण सहष्णु पौध वृद्धक जीवाणुओं की खोज कर उनके जैव-फॉर्मूलेशन तैयार किये। तरल जैव-फॉर्मूलेशन हॅलो-मिक्स में लवण सहिष्णु जीवाणुओं की उचित संख्या होती है जो कि वातावरण में उपस्थित नत्रजन को एकत्र कर पौध वृद्धि करते हैं। साथ ही इस तरल जैव- फॉर्मूलेशन में फास्फोरस एवं सूक्ष्म पष्क तत्व ज़िंक घुलनशीलता में वृद्धि करने वाले लवण सहिष्णु जीवाणु हैं जो पौधे को इन तत्वो को उपलब्ध करातें हैं। इन जीवाणों से फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है। ऊसर भूमि में धान, गेहूँ, चारा, सब्जी की फसलों एवं तिलहन फसलों आदि के लिए इस जैव-फॉर्मूलेशन के प्रयोग करने से 15-20 किलोग्राम नत्रजन, 10 से 15 किलोग्राम फास्फोरस एवं 2-4 किलोग्राम ज़िंक प्रति हेक्टेयर की बचत हो जाती हैं। इससे ऊसर मृदा में फसलों पर वातावरण का अनुकूल प्रभाव भी पड़ता हैं इसके जीवाणु जडों के पास की मृदा में रासायनिक पोषक तत्व उपलब्ध करातें हैं। यह पौधों की जड़ों में होने वाली कवक जनित बीमारियों से भी बचाते हैं। परिणामस्वरूप पौधे स्वस्थ रहते हैं एवं पैदावार में भी वृद्धि होती है। इस तरह खनिज जिप्सम एवं जैविक खाद की उपलब्धता के अभाव में लवण सहिष्णु सूक्ष्म जीवों द्वारा ऊसर मृदा को सुधार कर अधिक उपज ली जा सकती है। ऊसर भूमि में जहाँ अन्य प्रजाति के जीवाणु की खाद कम असरदार रहती है वहीं लवण सहिष्णु जीवाणु बहुत लाभदायक होते है। यह मृदा स्वस्थ बनाये रखने के साथ कृषि में रसायनों के उपयोग में कटौती करते है। इन लवण सहिष्णु जीवाणु के तरल जैव-फॉर्मूलेशन के प्रयोग से लवण प्रभावित मृदाओं में कम लागत से फसल उत्पादन में वृद्धि भारत में कुल 67 लाख हेक्टेयर भूमि लवणता से प्रभावित है और इस में से 13 लाख हेक्टेयर भूमि उत्तर प्रदेश में है जिसे सुधारने के लिए समान्यता खनिज जिप्सम के साथ जैविक संशोधन के उपयोग किया जाता है। के साथ-साथ कम लागत से जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है। हैलो-मिक्स तरल जैव-फॉर्मूलेशन लवण सहिष्णु जीवाणुओं के कंसोर्टिया के प्रयोग से धान एवं गेहूं की फसलों में औसतन 12 से 14 प्रतिशत तक की वृद्धि पायी गयी। साथ ही ऊसर मृदा के पी.एच. मान में 9.7 से घटकर 8.9 तक की कमी देखी गयी। इस के उपयोग से धान-गेहूं के किसानों की आमदनी में दोगुना हुई। बीते 6 वर्षो में लखनऊ, रायबरेली, उन्नाव, सीतापुर, हरदोई, सुल्तानपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़, आगरा और इटावा के किसानों ने रबी एवं खरीफ फसलों में लगभग 3500 एकड़ में प्रयोग कर लाभ प्राप्त किया एवं गुजरात और बंगाल की लवण युक्त भूमि में लाभ प्राप्त हुया। इस जैव-फॉर्मूलेशन तकनीक को एग्रीइनोवेट इंडिया, नई दिल्ली के माध्यम से मैसर्स आई पी एल बायोलोजीकल्स लिमिटेड, गुरुग्राम, को वाणिज्यिक पैमाने पर उत्पादन और विपणन के लिए लाइसेंस भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अनुमोदित किया गया है। इसके लिए कंपनी की मैनेजर डॉ विमला प्रकाश के मार्गदर्शन में वैज्ञानिक डॉ प्रगति कटियार व श्री गुरमीत सिंह बंसल को इसे बनाने की पूरी विधि पर प्रशिक्षण के साथ इसमें प्रयोग किए गए लवण सहष्णु जीवाणुओं के साथ पूरी प्रौद्योगिकी पाँच दिवसीय प्रशिक्षण दिनांक 25 से 29 सितंबर को लखनऊ स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के अन्तर्गत क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक और तकनीक के जनक डॉ संजय अरोड़ा एवं डॉ. यशपाल सिंह द्वारा दी गयी। तकनीक हस्तांतरण कार्यक्रम में केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल के निदेशक डॉ. राजेन्द्र कुमार यादव द्वारा बायो फॉर्मूलेशन हॅलो-मिक्स तकनीक को तकनीक विकसित करने वाले संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. संजय अरोड़ा द्वारा संस्थान के पी.एम.ई यूनिट के प्रभारी डॉ. राज कुमार की मौजूदगी में संस्थान के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, लखनऊ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में केंद्र के अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार दुबे द्वारा किया गया। इस अवसर पर संस्थान के समस्त वैज्ञानिक व तकनीकी अधिकारियों मौजुद रहे।

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