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कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के सब्जी विज्ञान विभाग द्वारा आलू उत्पादन पर एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के निदेशक डॉ बृजेश सिंह थे। डॉ बृजेश सिंह द्वारा कहा गया कि आलू एक अद्भुत फसल है जो वैश्विक दृष्टिकोण से कुल उत्पादन के मामले में चावल एवं गेहूं के बाद तीसरे स्थान पर है तथा देश में उगाई जाने वाली प्रमुख वाणिज्यिक फसलों में से एक है। उत्तर प्रदेश के बहुत से जिलों की आर्थिक स्थिति आलू उत्पादन पर निर्भर करती है। उन्होंने बताया कि आलू का पौधा दैहिक रूप से 120 टन प्रति हेक्टर तक उत्पादन करने में सक्षम है लेकिन प्रतिकूलता के कारण प्रदेश के अधिकांश जिलों में आलू की उत्पादकता लगभग 30 टन प्रति हेक्टर है। डॉ बृजेश सिंह द्वारा बताया गया कि आलू की उत्पादकता बढ़ाने के लिए केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा निरंतर ऐसी प्रजातियों का विकास किया जा रहा है जो कम लागत में अधिक उत्पादन दे सके एवं स्वाद भी अच्छा हो तथा जिसमें कीट एवं रोग के प्रति सहनशील क्षमता हो। उन्होंने कहा कि आलू के बीज की उपलब्धता कम है इसलिए सीड प्लॉट टेक्नीक को अपनाकर किसान भाई आलू बीज की उपलब्धता बढ़ा सकते हैं। उन्होंने आलू के मूल्य संवर्धन पर विशेष बल देते हुए कहा कि की मूल्य संवर्धन के लिए आलू की प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त चिप्सोना वर्ग की प्रजातियां की बुवाई करें। उन्होंने यह भी कहा कि पछेती झुलसा एक घातक बीमारी है जिस पर सुरक्षात्मक छिड़काव बहुत प्रभावकारी है।इस अवसर पर अटारी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राघवेंद्र सिंह द्वारा आलू फसल में खरपतवार प्रबंधन पर जानकारी देते हुए कहा कि आलू के खेत में फ्लैट फैन या फ्लैट जेट वाले नोजल स्प्रेयर से मेट्रीब्यूजिन की 500 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। निदेशक शोध डॉ पी के सिंह द्वारा बताया गया कि आलू में 40 से 50% लागत अकेले बीज पर आती है जिसको कम करने की आवश्यकता है, जिसके लिए नवीन शोध किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि आलू उत्पादन का लागत मूल्य दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है इसलिए उत्पादन लागत को काम करना होगा ताकि किसान भाई अधिक आय प्राप्त कर सकें। इस अवसर पर सब्जी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ आर बी सिंह के साथ-साथ डॉ राजीव, डॉ इंद्रपाल सिंह, डॉ शशिकांत, डॉ संजीव कुमार सिंह, डॉ अजय कुमार यादव आदि वैज्ञानिकों द्वारा भी अपने विचार व्यक्त किए गए। कार्यक्रम में जनपद औरैया तथा कानपुर देहात के 100 से अधिक किसानों ने प्रतिभाग किया।