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कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के अधीन संचालित दिलीप नगर कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर के प्रसार वैज्ञानिक डॉ राजेश राय ने बताया कि अलसी की खेती बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि इससे तेल के साथ-साथ रेशा भी निकलता है उन्होंने बताया कि पूरे देश में अलसी का क्षेत्रफल 7.98 लाख हेक्टेयर है। उत्तर प्रदेश में अलसी का क्षेत्रफल वर्ष 2018-19 में 0.28 लाख हेक्टेयर तथा उत्पादन 0.18 लाख मैट्रिक टन था। उन्होंने बताया कि इसमें प्रोटीन 18 से 20%, कार्बोहाइड्रेट 18 से 88%, वसा 38 से 42%,कैलोरी 530 किलो कैलोरी, रेशा 20 से 22%, विटामिंस, मिनरल्स के साथ-साथ एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि अलसी में ओमेगा 3 फैटी एसिड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। डॉ राय ने बताया कि अलसी की बुवाई का समय बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए अक्टूबर का प्रथम पखवारा तथा शेष उत्तर प्रदेश में अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में बुवाई करनी चाहिए। बुवाई हेतु विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अलसी की प्रजातियां जैसे गरिमा, शुभरा, श्वेता, नीलम, पद्मिनी, शेखर, गौरव, शिखा, रश्मि, पार्वती, रुचि सहित अन्य हैं जबकि वर्ष 2019 में विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सूर्या एवं अन्नू प्रजातियां पूरे देश के लिए संस्तुति हैं उन्होंने बताया कि सामान्यतः अलसी में ओमेगा-3 फैटी एसिड 50 से 62% होता है जबकि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सूर्या प्रजाति में ओमेगा-3 फैटी एसिड 62.7% पाया जाता है। उन्होंने इसके प्रयोग से होने वाले लाभों के बारे में बताया कि ओमेगा-3 कोलेस्ट्रॉल को घटाता है अर्थराइटिस की समस्या को दूर करता है। इसमें 20 से 22% रेशा होता है जो मधुमेह को कम करता है अलसी में लिग्निन भी पाया जाता है जो कैंसर को नियंत्रित करने में लाभकारी है विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर आनन्द कुमार सिंह ने बताया कि अलसी के तेल से ओमेगा 3 कैप्सूल दवाइयों के रूप में प्रयोग किया जाता है तथा मिल्क केक, बिस्किट के लिए बेकरी में भी प्रयोग होता है। तथा लड्डू बर्फी जैसी मिठाइयां भी बनती हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभकारी हैं।
