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कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति डॉक्टर आनंद कुमार सिंह के निर्देश के क्रम में कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर के मृदा वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने “फसल अवशेषों को न जलाने जलाएं,बल्कि बनाये खाद” नामक किसानों हेतु एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने बताया कि फसल अवशेषों में आग लगाने से वातावरण में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे मानव एवं पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। साथ ही सूचहम जीवो की भी मृत्यु हो जाती है। जो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि फसल अवशेषों के जलाने से फास्फोरस और पोटाश जैसे पोशाक तत्व अघुलनशील अवस्था में हो जाते हैं। जिससे मृदा का पीएच मान बढ़ जाता है। और उसकी उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है।इसके अतिरिक्त पशुओं के लिए चारे की कमी हो जाती है। डॉक्टर खान ने बताया कि कृषि अवशेष एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है जो मिट्टी के स्वास्थ्य और संरचना के लिए बहुत ही आवश्यक है। उन्होंने किसानों को बताया कि धान के पुआल को मृदा में मिलाने से 0.36% नाइट्रोजन, 0.10% फॉस्फोरस, 1.70% पोटाश,जबकि मक्का के फसल अवशेष में 0.47%नाइट्रोजन,0.50% फॉस्फोरस एवं 1.65% पोटाश मिट्टी को प्राप्त हो जाता है। जिससे मृदा उपजाऊ हो जाती है और किसान भाइयों को आर्थिक लाभ होता है। डॉक्टर खान ने बताया कि फसल अवशेषों को मृदा में मिलाने से उनकी संरचना में सुधार, पर्यावरण सुधार, मृदा क्षरण व पोषक तत्वों की अधिकता, जल क्षमता में वृद्धि तथा आर्थिक लाभ में वृद्धि होती है।उन्होंने किसान भाइयों से फसल अवशेष न जलाने के लिए अपील की है।