एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण संपन्न

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न्यूज़ एक्सपर्ट—
कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर द्वारा आज दिनांक 19 अगस्त 2023 को एससी एसपी योजना के अंतर्गत ग्राम सहतावन पुरवा में धान फसल में पोषक तत्व प्रबंधन विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण का सफल आयोजन कराया गया। जिसका आज समापन हुआ। कार्यक्रम में कृषको से वार्ता करते हुए केंद्र के प्रभारी डॉ अजय कुमार सिंह ने बताया की धान की अधिक पैदावार के लिये एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन एक महत्वपूर्ण उपाय हैं, जिसमें रसायनिक उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व, जैविक उर्वरक, हरी-नीली शैवाल, गोबर की खाद एवं हरी खाद आदि का समुचित उपयोग किया जाता हैं। धान के उत्पादन में मुख्य पोषक तत्व नाइट्रोजन (नत्रजन), फास्फोरस (स्फुर), पोटाश, जिंक (जस्ता) आदि महत्वपूर्ण हैं जिनकी भरपाई किसानों द्वारा रसायनिक उर्वरकों की मदद से की जाती हैं, किंतु एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन सभी प्रकार के आदानों को आवश्यकतानुसार उपयोग करके को बढ़ावा देता हैं। मृदा के स्वास्थ्य को बनाये रखने, मृदा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने एवं लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाने के लिये एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन अत्यंत आवश्यक हैं। कार्यक्रम में डॉ खलील खान मृदा वैज्ञानिक ने जानकारी दी कि धान की फसल के लिये 100 से 120 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फास्फोरस एवं 30-50 किग्रा/हैक्टेयर पोटाश की मात्रा की सिफारिश की जाती है। खेत तैयार करते समय खेत में सड़ी हुई गोबर खाद अथवा कम्पोस्ट खाद का 10-12 टन का प्रयोग किया जाये तो इससे नाइट्रोजन का अधिक उपयोग हो पाता हैं एवं पोषक तत्व प्राप्त होने के साथ-साथ मृदा का भौतिक स्तर में भी सुधार होता हैं । इसके अलावा धान में कुछ सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी महत्व है । जैसे जिंक यानी जस्ता और आइरन यानी लौह। ऐसी मृदा जिसमें जस्ते की कमी पाई जाती है उनमें जस्ते की कमी के कारण फसल में कल्ले फूटने में कमी, पौधों में असमान वृद्धि, बौने पौधों की पत्तियों में भूरे रंग के धब्बे पडऩा एवं नयी पत्तियों की निचली सतह की मिडरिव में हरिमाहीनता पत्तियों का अपेक्षाकृत सकरा होना, आदि लक्षण दिखाई देते हैं। मृदा में जिंक (जस्ते) की इस कमी को पूरा करने के लिये जिंक सल्फेट की 25 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए ।लोहे की कमी को क्लोरोसिस के नाम से जाना जाता है। लोहे की कमी को दूर करने के लिये 1 कि.ग्रा. फेरस सल्फेट को 100 ली. पानी में घोल कर सात दिनों में एक बार छिड़काव करना चाहिए। ढैचा की फसल से तैयार की गई हरी खाद का उपयोग भी धान की फसल में लोह तत्व की पूर्ति करता है। 0.2 टन/हैक्टेयर जिप्सम पायरायट देने से लोहे एवं गंधक की आवश्यकता पूरी होती हैं। कार्यक्रम में छुन्ना लाल, विजय पाल, कन्हैया लाल, जिलेदार समेत 50 कृषको एवम महिलाओं ने प्रतिभाग किया । कार्यक्रम में डॉ निमिषा उपस्थित रही।

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