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जब सारे विश्व में एकेश्वरवाद पर आध्यात्मिक शोध चल रहे थे तब भारत में श्री रामकृष्ण परमहंस जी जैसे विलक्षण संत ‘काली मां’ की मूर्ति से घंटों बातें किया करते थे, शुरूआती दिनों में लोग उन्हें पागल समझते थे लेकिन धीरे – धीरे लोगों को समझ आया कि रामकृष्ण जी के भीतर कुछ घट गया है. काली को भोग लगाना उनकी नियमित दिनचर्या थी। भोजन की थाली लेकर मंदिर के गर्भगृह में घुसते तो निश्चित नहीं था कि कब बाहर निकलें, एक दिन उनकी पत्नी शारदा उन्हें खोजते हुए मंदिर जा पहुंची श्रद्धालु जा चुके थे और परमहंस गर्भगृह के भीतर भोग लगा रहे थे, दरवाजे की दरार से उन्होंने अंदर झाँका तो वे स्तब्ध रह गईं, साक्षात काली रामकृष्ण के हाथों से भोजन ग्रहण कर रहीं थीं! उस दिन से शारदा का जीवन बदल गया। सनातन धर्मावलंबियों को मूर्तियों में जान फूंकने का विज्ञान हजारों साल पहले से मालूम था.. अटल श्रद्धा के उस अदृश्य महाविज्ञान ने आज तक सनातन प्रतिमाओं को जीवंत रखा !! मूर्ति स्थापना के दौरान मूर्ति में वेद मंत्रों के साथ पूरे विधि विधान से मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के कठोर व विशेष नियम है। अष्टांग योग के यम- नियमों का यजमान को पूरा पालन करना पड़ता है। और एक पूर्ण रूप से प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति के आसपास दिव्य ऊर्जा का ओरा बना हुआ रहता है। शास्त्र कहता है कि जिस मूर्ति को निरंतर वर्षों तक पूजा जाता है उसमें प्राण प्रतिष्ठित हो जाते हैं। उसमें देवत्व ऊर्जा समाहित हो जाती है। इसलिए ध्यान रहे देव मंदिरों में व मूर्ति के आसपास मर्यादा बनाकर रखना चाहिए और घर में भी अपने मंदिर व पूजा की तस्वीरों के आसपास विशेष साफ- सफाई व पवित्रता रखनी चाहिए।